Monday, October 31, 2011

प्रत्याशा


प्रत्याशा ..एक भारी भरकम शब्द ...लोगों की अपनी अलग अलग प्रत्याशायें होती है  ....कभी कभी मैं सोचती हूँ प्रत्याशा का भाव कितने गहरे हमारे मस्तिष्क में जज्ब है और हमारी दिन ब दिन गतिविधियों को प्रभावित करता है ...लगता तो यह है कि अपेक्षा या प्रत्याशा का भाव हमारे जीन में ही समाया हुआ है ..और बिना इस भाव के हमारी कोई गतिविधि ही संचालित नहीं होती ...हम जो कुछ भी करते जाते हैं .. हम चाहते हैं कि वे घटित हों ....प्रेम, दोस्ती, काम-धाम ..एक लम्बी फेहरिस्त है.... ........हर ओर हर किसी की कोई न कोई प्रत्याशा है ..चाह है अपेक्षा है जो हर कोई एक दूसरे से रखता है|
न्यूटन ने भी कहा था -"प्रत्येक क्रिया की एक समान प्रतिक्रिया होती है"
पर यह भौतिक जगत ही नहीं हमारे ऊपर भी लागू होता है ... ....और यही "समान प्रतिक्रिया" ही तो प्रत्याशा /अपेक्षा /चाह है हमारी एक दूसरे से जो हमेशा बनी रहती है ...
और अगर हमारी ऐसी अपेक्षायें पूरी नहीं होती तो हम दुःख दर्द से आह कर उठते हैं .. 

अपेक्षायें होती हैं कष्टकर
जहरीली, घुमावदार
लगें सर्प दंश सरीखी
कभी कभी |

यह एक दिमागी कीड़ा है
मस्तिष्क की शायद कोई विकृति
विचित्र होती हैं यह चाह
है बड़ी उबड़ खाबड़ प्रत्याशाओं की राह |

इनका होना न होना
न होता ऐसा कोई भाव 
क्योंकि हमारी तकदीरें
पूरी कर देती हैं इनका अभाव |

और ये मौजूद ही रहती हैं
हमेशा, हर बार 
नहीं कर सकते हम इनकी
मौजूदगी से इनकार |

एक अंतहीन दुष्चक्र
नहीं कर सकते जिन्हें परित्यक्त
कितनी ही प्रयास कर लें
या चतुराई से  कोई बहाना बना लें |

एडिथ एवांस ने कहा है-" बिना प्रत्याशाओं के मानव जीवन की कल्पना ही संभव नहीं है "
आप क्या सोचते है ?? 
क्या सरल है इसके साथ रहना या इसके बगैर ??
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Expectations 
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Saturday, October 22, 2011

बदनसीब कहानियां


आधुनिक दुनियाँ ....विज्ञान और प्रौद्योगिकी का युग ,जगह जगह खुलते शापिंग माल ,गगनचुम्बी इमारतें, अंतर्जाल का फैलता विस्तार और सोशल नेटवर्क ..दूसरे ग्रहों ,चंद्रमाओं तक जा पहुँचाने के हमारे अभियान, ऊर्जा खोजों की नयी झिलमिलाहटें....सब कितना भव्य लगता है..हमें गर्व होता है कि हम कितनी तेजी से उन्नति कर रहे हैं ..ऐसे और भी सारे दृश्य जो विज्ञान फंतासी फिल्मों और उपन्यासों में पढ़ते हैं एक दिन हकीकत में बदल जायेगें..कौन जाने हम कभी अपनी छुट्टियां मंगल पर जा बितायें! 
लेकिन तनिक रुकिए !!
एक हकीकत और भी है ! एक और दुनियाँ और भी वजूद में है जो एक दूसरी हकीकत बयान कर रही है जहाँ  ४० फीसदी से अधिक लोग अमानवीय बसाहटों में गुजर बसर कर रहे हैं ..कुछ को कुदरत ने मारा है मगर बहुतेरे हमारे जातीय भेद भाव और उपेक्षा के शिकार हैं ....
एक चुभता सत्य! 
ऐसे संसार की एक झलक पाने को आपको किसी अफ्रीकी देश तक नहीं जाना है .. अपने सुख सुविधाभरी जिन्दगी से इतर तनिक गर्दन घुमा कर देखिये तो |
उन अभाव ग्रस्त जिंदगियों -चलती फिरती लाशों को देखिये मगर कहाँ? हम इतने असंवेदी और बाहरी जगत की सच्चाईयों के प्रति प्रतिरोधी हो चुके हैं कि हमें यह नग्न सत्य दिखता नहीं और अगर दिखता भी है तो एक खूबसूरत शहर के बदनुमा दाग मान मुंह फेर लेते हैं | 

हम खुद अपने में ही इतने मशगूल हैं कि इन अभावग्रस्तों की कुशल क्षेम कोई भी सहायता,इमदाद की फ़िक्र ही नहीं होती हमें .. ..

एक बदनसीब कहानी ...
यह कहानी है एक उस आदमी की जिसने पिछली सुनामी में अपना घर परिवार गँवा दिया था ....
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पूरी तरह बर्बाद और विनष्ट
प्रलयंकारी लहरों में
बह गए उसके सपने
घूमता बेसहारा इधर-उधर
कुंठित भिखारी सदृश |
सुनामी ने किया था
जिसे परिवार से विलग..
जीवित तो बच गया  वो
परन्तु खो चुका था जीवन |

नसों का ताना बना गया था गड़बड़ा
लाखों -करोड़ों की भांति
वो भी बेसुध सा, खड़ा हडबडा
रात- दिन, हफ्ते -महीने
छलते उसे हर दिन 
धनुस्तम्भ की भांति
जिए वो हर पल, गिन-गिन
जाने न क्या है कब ?? कौन से दिन ?
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एक और बदनसीब कहानी :
जो इक्कीसवी सदी के एक सभ्य,अच्छी शिक्षा प्राप्त और धनाढ्य इन्सान की है ,एक सब तरह से संपन्न जीवन यापन कर रहे सुखी मनुष्य की
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२१वीं सदी में
में, मेरी, और स्वयं की
मुझे सिर्फ होती है परवाह
बाकी और लोगों की
न मुझे फ़िक्र, न चाह |
वे सभी तो भगवान के बन्दे हैं
हम निरीह, व्यथित
भला कर ही क्या सकते हैं...
कहाँ है मेरे पास समय और पैसा
में नहीं कर सकता कुछ ऐसा- वैसा |
वैसे भी हम संतप्त और खुद से बेदार
दूसरों की फ़िक्र करना
निहायती रद्दी और बेकार |

देखभाल ,सहायता ,दया और दान
कहाँ हमारी सूची में,
हम तो भैया व्यस्त पड़े है
अपनी खुद की ड्यूटी में |
मेरी दुनिया है विकास और प्रगति की
विलासिता और मौज मस्ती की
मुझे छोड़, बाकी सब के पास जाइये
मेरे अलावा, दूसरे लोगों पर गौर फरमाईये |
कल्याण, परोपकारिता जैसे कपडे
मुझे फिट नहीं होते , जनाब
आजकल इन सब चीजों के बारे
में बात नहीं किया करते |
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  अब आप बताईये कौन सी कहानी ज्यादा बदनसीब है ??
त्रासदी तो दोनों में हैं .............लेकिन कौन सी ज्यादा गंभीर और खतरनाक है ??

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Thursday, October 13, 2011

सावधान: महामारी



गुस्सा ,चिडचिडापन,निराशा और खराब मूड ..जो नाम दें आप इसे.... ये सभी एक बड़ी छुआछूत की बीमारी के अलग अलग नाम हैं ..इनका एक हल्का सा प्रभाव भी एक बड़ी घटना को अंजाम दे जाता है ..खुशियों के माहौल को चौपट कर जाता है ..
इस बीमारी से दूर रहें! 
आप इस बीमारी के लक्षण कहीं भी देख सकते हैं ..कोई भी एक खराब  मूड और जुबान का आदमी इसकी गिरफ्त में आ सकता है और फिर होता है माहौल का खराब होना शुरू ...
बिना सोचे मुंह से अपशब्द निकालने ,बोलने वाले लोग आज बहुतेरे हैं और जब ऐसा होता है तो..
 फिर आप जानते ही हैं ...होती है बौछार कुछ ऐसी ..$##& ##$$... 
उस आदमी को देखो 
वह जहर उगलता आदमी 
माहौल को ख़राब  करता 
वो गुस्सेल चिढ चिढ़ा आदमी
यह हमेशा ऐसा ही 
रहा है करता 
नहीं छोड़ सकता वह 
यह गंदी आदत 
बल्कि और भी बढाता रहा है 
अपनी इस बुरी आदत को ...
अपने चिढ़े जले भुने चेहरे के साथ 
नहीं छोड़ सकता यह 
गंदी आदत, भले ही 
इसका खुद का अंत न हो जाय |

छुआछूत की खतरनाक
यह बीमारी 
है अनचाही फैलने, बढ़ने वाली 
न हो इसका  खुद का  अपना 
भले ही कोई मकसद 
मगर इसके मरीजों का मकसद है 
परिवेश को दूषित कर जाने का 
लोगों के सुख चैन को छीन  लेने का |

एक परजीवी की ही तरह 
यह अपने आश्रित को है 
धीरे धीरे ख़तम करती जाती 
प्राण घातक है बनती जाती 
अगर समय रहते नहीं हो पाया 
इस बीमारी का निदान 
तो यह बन जाती है विषाणु -रोग 
से भी अधिक खतरनाक 
इसलिए सावधान!
इसकी जड़ कहीं और नहीं 
बस आपमें ही है 
समय रहते इसे ढूंढ, भगाईये 
इसे दूर, नहीं तो 
 आपको भी चपेट में लेते 
नहीं लगेगी देर इसको ..

..तो दोस्तों अब यह आप पर है अपने में इस बीमारी के लक्षण ढूंढिए और खुद उपचार  कीजिये 
मुझे तो यही सबसे कारगर उपाय लगता है इस बीमारी के रोकथाम का ..
हम इसे महामारी बनते तो नहीं देख सकते|



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Sunday, October 2, 2011

मौन के बोल



कहते हैं मौन मन की शान्ति के साथ ही आत्म -निरीक्षण का मौका भी देता है
ठीक है यह ,मगर हमेशा सच नहीं 
क्योंकि 
कुछ मौन डरावने और अनचाहे होते हैं .
 जैसे टकराव और तीखे संवादों के बाद का  मौन, डांटने डपटने के बाद का मौन ,युद्धोपरांत का मौन और म्रत्यु के उपरान्त का मौन|
 
ये कुछ मौन आपको विदीर्ण कर डालते हैं और जीवन तबाह हो उठता है|
  इस तरह मौन के कितने ही आयाम और अभिव्यक्तियाँ हैं ...इसकी अपनी भाषा और बोल हैं जो सार्वभौमि है और बिना किसी पूर्व अनुभव के भी समझी जाने वाली है .

 कभी भी मौन के चलते प्रगाढ़ सम्बन्ध तक टूट जाते हैं क्योकि उभय पक्ष कोई भी संवाद नहीं करते ..बस मौन रहते हैं ..
ऐसा मौन खतरनाक है और हमें ऐसे मौन से दूर दूर ही रहना चाहिए ऐसे मौन की मुखरता बस उदासी का ही सबब बनती है. 

मौन की मुखरता 
बिलकुल सन्नाटा ,एक 
अनचाही मौजूदगी 
सताती हुयी डरावनी सी 
चरम चुप्पी 
एक कैद सी अवस्था 
एक संक्षिप्ति कितने ही 
आयामों की ...जो खुद 
कई खंडों अभिव्यक्त 
होती चलती है...
और चुभती है  
आमंत्रित करती  है 
घुटन और अप्रसन्नता 

 कितना चुभता है मौन 
बिलकुल भी स्वागत योग्य नहीं 
घिनौना सा और कितना 
संतप्त करता हुआ ...
एक उत्प्रेरक और 
बिना समझ में आने
 वाले भावों का ....

 इस मौन  का बड़ा है 
शब्दकोश और छिपे अनेक भाव 
जो चुभते  हैं नश्तर से भी तेज 
 परिवेश को भी  करता 
जंग लगाता   मौन जिससे 
तिल तिल कर छीजते जाते 
लोगों के वजूद ..
और उनकी चेतना 
यह अँधा करती है और विचारों 
को करती चलती है कुंद ....

इसमें कोई शक नहीं 
सभी मौन बुरे नहीं मगर ऊपर वर्णित 
मौन आपकी सेहत के लिए बुरा है ...

पुनश्चकिसी भी गलतफहमी और दुः भरे तनाव  के लिए मौन कभी भी हल  नहीं है एक समस्या ही है ...आगे बढिए बात कीजिए ...पुकारिए कि लगे अभी सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ ....अभी भी आस बाकी है...
मौ के बोल कभी भी मीठे फल नहीं देते ....
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Speech of Silence 
http://jyotimi.blogspot.com/2011/10/speech-of-silence.html
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