Wednesday, August 31, 2011

गेहूं के साथ पिसते घुन

युद्ध हमेशा तबाही लाता है, कभी किसी का युद्ध से भला न हुआ है न होगा | युद्ध में जिसकी सबसे ज्यादा हानि होती है वह है मासूम आम जनता | जब युद्ध में बम गिरते है तो इन्सान या जगह देखकर नहीं गिरते वो तो बस गिरते है जिंदगियां लेने के लिए | युद्ध में आम जनता गेंहू में घुन की तरह पिसती है |



युद्धक विमानों ,टैंकों , बमों और 
रॉकेट लांचरों से पल प्रतिपल दगते 
गोले बारूद और 
सैनिकों के कदमताल से 
कांपती धरती,
भले ही ये दृश्य करते हों मनोरंजन 
वीडियो खेलों और कार्टूनों में 
मगर इनकी वास्तविकता
है कितनी भयावह 

बक्तरबंद सैनिकों का सीधे 
बढ़ता कारवाँ,चारो ओर हाहाकार 
फिर एक असहज सी शान्ति,

घृणित सन्नाटा ,कहीं कुछ भी  
सौम्य और भद्र नहीं .....
उजड़े आशियाँ सिसकती जिंदगियां 
बुझे कुचले अरमान 
हर तरफ विद्वेष और अमंगल  

सत्ता और शक्ति का संतुलन
राजनीतिक मंसूबे और व्यवस्था
 के नाम पर करोड़ों जिंदगियों 
के  दमन और निरंतर विध्वंस की 
ऐ सी कमरों में बनती कुटिल नीतियाँ 
खींचे जाते खाके बर्बादी और तबाही के 

शरणार्थी शिविरों में रहने को अभिशप्त 
दुनिया की एक बड़ी आबादी 
दहशत भरी जीवनशैली अपनाने को 
मजबूर असंख्य लोग
निराहार ,भोजन को तरसती 
अस्थायी शिविरों में कैद 
अजन्में  और दुधमुहें बच्चे
 और उनकी माएं 

कौन है जिम्मेदार धरती पर 
उभरते इस नरक का ,
कोई भी तो जिम्मेदारी नहीं लेता 
सभी शान्ति दूत होने का
करते हैं आगाज 
निर्दोष नागरिकों के लिए कैदखाना 
बनते उनके ही देश 
इस त्रासद माहौल में नहीं 
कहीं  भी कोई राहत 
न कोई सकून 

असली चेहरे तो  अभी भी कहीं 
छुपे हैं ओट में, सुदूर  नेपथ्य में 
बस सामने है इन 
गरीब ,क्षुद्र  मानवों का करुण क्रंदन 
क्योकि वे हैं पिस रहे हैं 
गेहूं के घुन के मानिंद

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Monday, August 22, 2011

समय... एक शिक्षक



बिना प्रत्याशा के आने वाली 
कितनी ही घटनाओं से भरा पूरा है
 जीवन का पैमाना.....
व्यतीत घटनाएं  बस रह जाती हैं 
दादी अम्मा की कहानियाँ ,
किस्से ,संस्मरण और झांकियां 

द्रुत गति से भागता समय ,
याद दिलाता है उस बिरवे को 
समय के साथ जो बनता गया है 
एक वटवृक्ष ...
कितना छोटा है जीवन का वजूद
कल्पों के इन्ही अनगिनत
अशेष टुकड़ों में बंटा...
मानों अभी हड़प्पा काल 
जैसे कल  ही तो हो घटा
उसके बाद मौर्य काल की छटा 
पल पल में इक नया विहान 
नयी संस्कृति नए युग का आह्वान 
बोधि वृक्ष के नीचे बुद्ध महान 
दे रहे मानवता को नया ज्ञान 
कराते हमारे हमारी गलतियों 
और पापों का सम्यक ज्ञान 

अकबर काल के मानो कुछ ही पहले 
ही हुआ हो हरफनमौला 
सम्राट अशोक का अवतरण 
अचम्भित जनता करती जिनका 
चरण  वंदन ...
आह उन दिनों की दर्दभरी दास्ताँ 
 गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हिन्दुस्तां 
दुर्भाग्य और विवशता का शोक गान 
दिमागों में और जमीन पर छिड़ी एक 
अनवरत जंग .....
हर ओर  था जंगे आजादी का ऐलान 
आखिर  आ गया
वह दिन भी ,जब
था सारा विश्व स्तंभित

हुआ था भारत आजाद 
चहुँ ओर थी बिखरी प्रसन्नता 
खुशियों का इज़हार 
समय कैसे निकल चुका था 
निःशब्द दबे पाँव,पढाता
मानवीय प्रज्ञा को
 क्षण भंगुरता का  पाठ ....
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Time..
http://jyotimi.blogspot.com/2011/08/time-flies.html
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Tuesday, August 16, 2011

स्वतंत्र, मुक्त परन्तु कैद


स्वतंत्रता यानि सब  बंधनों से मुक्ति...
हर तरफ उन्मुक्त हो विचरना 
और सिंह की तरह दहाड़ना..
पक्षी की तरह गगन में 
निर्बाध उड़ते रहना.... 
इक खुशहाल परिवेश में 
मदमस्त हो चलना फिरना 
और कीड़ा कौतुक करते जाना ...

हर कोई गढ़ लेता है
 स्वतंत्रता की  दार्शनिकता भरी 
 अपनी अपनी परिभाषा 
अपने लिहाज से मनमांगी,
 मनमाफिक स्वतंत्रता के अर्थ ....
मगर हम तो रह गए हैं 
बस एक कैदी ,एक गुलाम 
आत्मघोषित स्वतंत्रता के ...
अपनी अंतहीन इच्छाओं के ...
जो पल प्रतिपल जनमती हैं 
हमारे दिमागों में और
 बनाती रहती हैं हमें 
आत्मकेंद्रित, अमानवीय चाहों -
सुख सुविधाओं का गुलाम ...
हम भूलते जानते हैं जन गण मन के 
दुःख दर्द और दारुण  यातनाओं को 
बस हो  रहते  केवल मशगूल 
स्वार्थभरी चाहनाओं में ....

बस दूसरों के सामने दिखावों के 
हम हो जाते हैं वशीभूत ..
प्रदर्शन  और बनावटीपन के नित नए 
प्रतिमानों  ,पद और प्रतिष्ठा के दिखावे ...
तब भी दावे से कहते हैं हम हैं स्वतंत्र,
बंधनों  और मजबूरियों से मुक्त.. 

हमारी रक्त धमनियां में है आवेग 
झूठे मद और अहंकार का 
दूसरों की  खुशियाँ तनिक भी
 नहीं भाती हमें ....
भले माथे पर पड़ता हो बल और 
 दुत्कारती हो  हमारी नैतिकता 

नए चलन और फैशन 
अपने छुपे तरीकों से 
बिगाड़ते हमारी अस्मिता 
नित प्रदूषित कर रहे 
हमारी अभिव्यक्ति और दृष्टि को 
संदूषित  करते हमारे उत्सवों- 
राज पथ के परेडों को..
फिर भी चहुँ ओर विराजती 
 गुलामी  पर होते रहते हैं 
हम हमेशा गर्वित ....
हम लालच से भी कहाँ मुक्त हो पाए?
अथाह संपत्ति, धन लोलुपता को 
लपलपाती हमारी जीभें,दुलराती दुमें 
झूठें यश वैभव के प्रदर्शन को 
 बेताब हमारी नस्लें..
न कोई पश्चाताप न ही आत्म मंथन 
जाहिर है ,हम हैं 
सर्वथा स्वतंत्र और मुक्त कैदीजन! 
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Independent, Free but SLAVES
http://jyotimi.blogspot.com/2011/08/independent-free-but-slaves.html
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Monday, August 8, 2011

अवैध


हर जगह हर गली हर मोड 
बिना अपवाद 
पसरी हुई अवैधता.... 
क़ानून की किताबों या फिर पावन किताबों 
के किसी भी मानदंड के मुताबिक़ ....
अवैधता ही अवैधता...
  फिर भी......
भाव भंगिमाओं की चुगली करते 
 'सब चलता है ' के  इज़हार ..
न कोई पाप बोध न कोई कृतज्ञता ....

कुटिल निष्क्रियता...
मिथ्याबोध 
नित प्रति बढ़ती जाती 
अवैधता की अंतहीन सी लकीर 
ऐसे में दर किनार होते रहते
 मानवीय  सत्कर्म ....

ऐसे परिदृश्य में राजनीति के विदूषकों 
के हथकंडे और  घटिया कारनामें ...
नहीं  छटेगा यह गहराता कुँहासा  
इनसे समझौते करते जाने और 
सब कुछ चलता है की मनोवृत्ति से ...
खुद की  भी अवैध संलिप्तताओं  से ...

हर रोज कोई न कोई नया बखेड़ा 
स्थितियों को और बिगाड़ता 
फिजां को बर्बाद करता ....
और भी भ्रमित  करता जाता 
फिर भी ,लोगों में  संतुष्टि की अनुभूति 
आखिर किस प्रकार और कैसे ? 

अरे भद्रजनों ,आँखे खोलिए ..
कुछ तो  महसूस कीजिये ...
परिवेश के बिगड़ते हालात पर
 तनिक तो गंभीरता से सोचिये 
हमारा दिमाग अब भी साथ है हमारे 
नहीं हुआ है पूरी तरह से बर्बाद ...
हम अब भी छेड़ सकते हैं जिहाद 
काबू कर सकते हैं हालात को 
 और  हो सकते हैं  फिर से आबाद |
~ ज्योति मिश्रा
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Illicit 
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Wednesday, August 3, 2011

प्राथमिकताएं

वक्त के साथ चेहरे बदलती जाती हैं 
हमारी प्राथमिकताएं...
एक पिटारी भरी होती हैं वे 
जिन पर चिपकियां लगी होती हैं ..
कम, औसत और ज्यादा की 
कभी तो वे सर चढी सी आती हैं बेलगाम 

और कर जाती हैं 
सारी तमन्नाओं को जमीदोज 
और  बदलती जाती हैं हमें भी 
समय के साथ......

प्राथमिकताओं की  पिटारी होती है खाली
 जब आते हैं इस दुनियाँ में हम ....

हमारे स्नायु कोशाओं की तरह 
होती जाती हैं ये भी दिन ब्र  दिन 
 जटिल और गहन 
और हमारी मासूमियत को छीनती जाती हैं 
पल प्रतिपल ....
तब सहज हो कहाँ बचता है कुछ भी 
अपने मन का कहने और करने का 

बड़े आकर्षक   शब्द हैं 
परिवार मित्र जीवन और कैरियर 
मगर  बदल देती हैं प्राथमकिताएं 
इन सभी को समय के साथ 
आपके पल पल को बदलती जाती हैं 

ये प्राथमिकताएं!  
मगर नहीं बदल पातीं आपके 
उदात्त अनुभूतियों और भावनाओं को 
मगर मित्र याद रखना 
यह तुम्ही तो हो 
जो अपनी इन प्राथमिकताओं को
 नियत करते हो..

फिर इनके चंगुल में 
मत होने दो बर्बाद इस जीवन  को 
जीवन जो बस एकबारगी मिलता है 
केवल एक बार बस एक बार ....
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Priorities..
http://jyotimi.blogspot.com/2011/08/priorities.html
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