Sunday, December 25, 2011

Merry Christmas n Happy New Year


आप सभी को Christmas व नव वर्ष की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं |
खूब मज़े करें, और खूब पार्टी करें !!
 PS: I have my exams in the 1st week of January.... So m partying n celebrating with books... Won't be blogging or reading your posts for few days.... but will b back soon :) 
Till then keep enjoying n keep writing !!!
~ Jyoti Mishra 



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Tuesday, December 20, 2011

दोष और विकार


 आज की इस आप धापी  भरे जीवन में और हर चीज़ में सबसे आगे रहने की होड़ में हम सब को  परफेक्शन की लत लग चुकी है | गलतियाँ व छोटी छोटी त्रुटियाँ हमें बर्दाश्त नहीं होती | 
एसा क्यों ??  हम ऐसे क्यों बनते जा रहे है ? क्यों हम लोगों की छोटी गलतियों को नज़र अंदाज नहीं कर पाते? आप अपने घर में या आफ़िस में लोगों या कर्मचारियों द्वारा की गयी ज़रा सी भूल का ऐसा तमाशा बनाते है की जैसे कुछ अति भयानक हो गया हो || 
हमारी सहन करने, और माफ़ करने की क्षमता को भगवान जाने क्या हो गया है ?

जिस प्रकार हर लिखा शब्द 
कहानी या गाना नहीं होता 
ठीक उसी प्रकार, 
कुछ काम का  न आना 
कोई पाप, या खोट 
का ठिकाना नहीं होता |

क्यों पड़े हम इस 
सर्वदा-पूर्णता के कुचक्र में |
विशुध्ता, के दुष्चक्र में |
क्यों नहीं  झेल पाते 
हम ज़रा सी गलती को   ?
क्या हो गया हमारी, 
मानवता की  भावना को ?

थोडा सा दोष कुछ 
बुरा नहीं  होता |
एसा इन्सान कोई हैवान नहीं होता |
सब में कोई न कोई दोष |
फिर क्यों ये बवाल 
और कैसा ये रोष ??

चलो उठ जाये ऊपर दोषारोपण और 
दोष की भावनाओं से |
क्यों न थोडा मज़ा ले, 
दोषयुक्त जीवन का |
सुधार नाम की चीज़ भी होती है 
इस दुनिया में, 
कोई भी पूर्ण रूप से परिपूर्ण नहीं इस जहाँ में |

तो अगली बार अगर आपको कोई गलती करता दिखे, तो उस पर पुरे जहाँ का गुस्सा उतरने की बजाय उसे या तो दूसरा मौका दे, या दूसरा काम ही दे दे | क्योंकि हर व्यक्ति, हर समय, हर काम में अच्छा हो, संभव नहीं |
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Imperfection
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Friday, December 16, 2011

मैं और संगीत


लय, ताल की ईश्वरीय दुनियाँ में रमता है मेरा मन 
संगीत से बढ़कर दुनियाँ में कुछ और नहीं. धरती पर संगीत का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता..... शायद ही कोई हो जिसे संगीत पसंद न हो .......  निजी रुचियों और विधाओं में फर्क हो सकता है मगर संगीत से कोई घृणा नहीं कर सकता . यह सिर्फ आनंद और मज़े के लिए ही नहीं मगर एक सुखद पलायन भी है रोजाना की विडम्बना भरी जिन्दगी से जिसमें हम एक प्रकार से कैद हो चुके है..... आप भले ही कैसे भी परिवेश और मूड में क्यों न हों सुमधुर संगीत सब कुछ आसान कर देता है ..... इसका असर जादुई है और इसमें सभी जख्मों को भर देने की अद्भुत क्षमता है |
मुझ जैसे संगीत प्रेमी के लिए तो इसका नियमित रोजाना डोज जैसे जीवन की निरंतरता के लिए अपरिहार्य है | मैं बिना इसके रह पाने की कल्पना तक नहीं कर सकती | 

संगीत, लय, ताल में 
गुम हो जाती मैं |
जैसे, मनपसंद रास्ते पर , 
यूँ ही घूमा करूँ मैं |

दुनिया की तमाम हलचलों से,
मतलबी काम, भेड़ चाल से |
बचने को तरसती मैं,
संगीत में बेसुध हो,
ये सब भूल जाती मैं |

मंत्रमुग्ध, नशा सा छाया, 
नाच, गाने का मन हो आया |
अपने ही अंतस से जैसे जा मिली मैं, 
बेखबर हो बाहरी दुनिया से,
बस, आकर छिप जाती मैं |

मेरा मन गा उठे हर कभी, 
जब हूँ मैं कोई दिक्कत में,
हाँ दोस्त, बस तभी |
सारे गम भूल कर खो जाती मैं, 
अपनी ही दुनिया में रम जाती मैं |
बस पल भर में ही,
चुस्त दुरुस्त हो जाती मैं |
सब छोड़कर, जब गुनगुनाती मैं |
प्रश्न: आपके जीवन में "संगीत" के क्या मायने है ??
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All I need is Rhythm Divine 
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Friday, December 9, 2011

भीड़ में वो चेहरा


जैसे ही आप अपने घर क बहार कदम रखते है, आप बन जाते है एक भीड़ का हिस्सा | जहाँ अनगिनत अनजान लोग एक साथ घूमते है, बसों में , ट्रेन में,  रोड पर...... एक दूसरे के जीवन को बिना छुए न जाने रोज़ कितने ही लोगों से आपका आमना सामना होता है  |
जाने कितने ही ऐसे अनजाने चेहरों से आप मिलते है.... पर आज कल किसी के पास अपने व अपने जानने वालों के अलावा किसी और के बारे न तो सोचने का समय है और न ही इच्छा | 
लेकिन कभी-कभी भीड़ में कुछ ऐसे चेहरों  से सामना होता  है जिसे  भूल पाना आसन नहीं होता |


वो चेहरा, भीड़ में 
सुबकता, अकेला एक कोने में |
कुछ तो गलत हुआ था, उसके साथ |
वो आंसू पोंछते, उसके आंसू भरे हाथ | 
बहुत अजीब था, वो सब देखना 
उससे भी ज्यादा अजीब था, 
उसका यूँ इस तरह, इतना अकेला होना |

उस चेहरे ने मुझे सोचने पर मजबूर किया 
उसका ऐसा बुरा हाल, आखिर ऐसे कैसे हुआ |
वो इस भीड़ में, यूँ अकेला खड़ा, 
जैसे किसी कोने में हो
एक अनचाहा पत्थर पड़ा |


उस चेहरे ने कह डाली, 
उसके पूरे जीवन की कहानी |
जैसे हो एक तस्वीर, 
अनंत कष्ट और परेशानी  |
कौन जाने ??
अभी और क्या-क्या सहना हो,
इन आंसुओं को कब तक ओर बहना हो |

अगले ही पल, में चल पड़ी 
अपनी मंजिल की ओर |
वही रोज़ का काम, 
रोज़ का शोर |
नियमित कामों की दैनिक खुराक, 
मेरी प्रतिष्ठा बनी रहे, 
यही कोशिश, यही फ़िराक |

आज भी, जब में नज़र घुमाती हूं 
अपने चारों ओर, 
ऐसे कितने ही चेहरे पाती हूँ |
अलग कहानी, अलग आधार,
पर वो लगे मुझे, जैसे वो हों सिर्फ
एक ही चीज़ के अनेक प्रकार |
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Face in the Crowd 
http://jyotimi.blogspot.com/2011/12/face-in-crowd.html
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Monday, November 28, 2011

विचारों का मायाजाल



हम सबकी अपनी राय व भिन्न विचार होते है | दुनिया में ऐसी कोई भी चीज़ नहीं जिसके बारे में हमारी कुछ राय न हों | फिर चाहे हमें उसके बारे में कुछ पता हो या नहीं, लेकिन उस विषय पर हमारी खुद की ख़ास राय  अवश्य तैयार रहती है |

चौंकिए मत यह सत्य है | चलिए में कुछ विषय चुनती हूँ और आप देखिये कैसे तुरंत आपके मष्तिष्क में विचारों की गाडी दौड़ेगी ........... जलवायु, कानून, नीतियां, सरकार, समाज, शिक्षा, स्वास्थ्य, अपराध, शिष्टाचार, धर्म, जाति.... देखा हर चीज़ के बारे में आपके पास कुछ न कुछ कहने को ज़रूर होगा | 
  
हमारी अपनी राय, विचार व अभिव्यक्तियाँ हमारे जीवन में कितना महत्व रखती है, इसका अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है की हमारे संविधान में हमें "अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता" मौलिक अधिकार की तरह प्राप्त है |न्याय-पालिका, जो की हमारी सरकार का तीसरा स्तम्भ है, सिवाय कानून की व्याख्या ( वकीलों व न्यायाधीशों की राय) ही तो है | 

तात्पर्य यह है के हम सभी लोग भिन्न विचारों व मतों के एकाधिक बादलों अर्थात विचारों के मायाजाल में घिरे हुए हैं | ये हमारे चारों तरफ है, और में यह सोचने पर मजबूर हूँ कि किस प्रकार ये "विचार", "राय ", "सुझाव" व भिन्न "मत" हमारे मन-मष्तिष्क को प्रभावित करते है, और तो और किस हद तक हमारे कार्यों व गतिविधियों को बदलने की ताकत करते है | 
एक और बात यहाँ सामने लाना चाहूंगी की किस तरह कभी कभी हम दूसरों के विचारों व सुझावों के प्रभाव में आकर अपनी एक प्रकार की पक्षपाती राय बना लेते है, और 
किस प्रकार बिना सोचे- समझे दूसरों पर अपनी राय थोपने का भी प्रयास करते है |

क्या  "राय", "विचार" जैसी चीज़ें 
महत्व रखती है ??
बिलकुल रखती है | 
तभी तो, कभी-कभी 
न चाहते हुए भी 
सुननी व सहनी पड़ती है |

ध्यान रहे 
ये है बड़ी ज़रूरी | 
लाये जीवन में नयापन व खुशहाली | 
जैसे होती  किसी बीमार के लिए
उसकी दवाई व गोली |

सम्पादकीय, पत्रिकाएँ
पुस्तकें व पत्रकार |
ये है चहुँ और, 
हर एक से है इसका सरोकार |
कोई नहीं सकता इसे नकार |

कुछ होती है हमारे समझ के परे
पर "होशियार" हम जो ठहरे |
मारे आदत के,
ये कभी नहीं मान सकते हम  |
की हमें नहीं आता ये,
ज्ञान हमें थोडा सा कम |

1 नंबर के विचारक है हम,
नहीं है किसी मशीन से कम |
बनाते है, संसाधित करते है,
भिन्न विचारों व सुझावों को |
करते है हम रोज़, करते रहेंगे हर दम | 

तो आप बताएं कैसी लगी आपको मेरी  " राय " और यह विचारों का मायाजाल  | 
आप  क्या सोचते है कि, किस प्रकार आपका जीवन इन भिन्न सुझावों व विचारों से प्रभावित होता है !!


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Monday, November 21, 2011

आओ खेलें राजनीति

राजनीति ....आप सोच रहे होंगें या तो मैं पागल हो चुकी हूँ या इन दिनों पढ़ाई ज्यादा कर रही हूँ जिसके कारण मेरे मन में राजनीति खेलने जैसे मूर्खता भरे विचार उठ रहे हैं | विश्वास कीजिये ये सब में सोच समझ कर लिख रही हूँ | सच तो यह है की हम सब राजनीति करते हैं और हम में से कुछ तो उच्च कोटि के राजनीतिज्ञ बनने की क्षमता रखते है | चलिए इसके पहले कि आप पोस्ट पढना बंद कर दें राजनीति की कुछ बात हो जाय|

क्या है राजनीति?

एक अवधारणा के रूप में राजनीति के कई रूप और अर्थ हैं ..लोगों के अपने अपने विचार हैं कि राजनीति आखिर है किस शगल का नाम ? कुछ तो बस यही मान लेते हैं रो राजनीतिज्ञ करते धरते हैं वही राजनीति है |

महात्मा गाँधी ने कहा है की कोई भी इंसान राजनीति से नहीं बच सकता | यह एक सांप की जकड की तरह है जिससे हम बच नहीं सकते सिर्फ लड़ सकते है |
 न जाने क्यों लोग राजनीति को हमेशा गलत नज़र से देखते है | 
अक्सर आपने लोगों को कहते हुए सुना होगा - " भैया हम नहीं करते राजनीति, हम तो दूर ही अच्छे"  लेकिन सच तो यह है की रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में आम इन्सान से ज्यादा राजनीति कोई और नहीं करता, तो फिर इस बात को मानने में दिक्कत व शर्म  कैसी ? चलो खेलें राजनीति |

क्या हम अभ्यस्त नहीं
तोड़ने मरोड़ने के 
अपनी आईडिया और विचारों
को  फ़ैलाने व थोपने के  ? ....
क्या हम जुड़ना नहीं चाहते
केवल खुद के आनंद से ,
बडप्पन और दूसरों पर प्रभुता जमाने
की नीयत से ?

रहते हैं हम खोये अपने ही निजी स्वार्थों में
लगती हैं अच्छी अपने ही मतलब की बातें
हमारे खुद के अपने अजेंडा हैं ,
अपने टेम्पलेट और फार्मूले |

क्या गोलबंदी कर , हम संघ 
व दुरभि संधियाँ नहीं बनाते ?
अपने गुटों में बटें, गहरे डूबे
संवेदनाओं से शून्य जड़वत
अपने ही मायाजाल में
उलझे नहीं रहते |
बिलकुल राजनितिक दलों की तरह
हम भी कूटनीति नहीं करते ??

तो चलिए खेलें हम राजनीति का खेल
वैसा ही तो जैस पहले से खेलते आये हैं |
कैसे कर सकते हैं भला इससे इनकार
क्योकि यही तो सच है !
अब मान भी जाओ यार !!!

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Thursday, November 10, 2011

Pretty Little Things

Didn't feel like writing it in Hindi. Please enjoy reading in English this time !!
Pretty Little Things 

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Monday, October 31, 2011

प्रत्याशा


प्रत्याशा ..एक भारी भरकम शब्द ...लोगों की अपनी अलग अलग प्रत्याशायें होती है  ....कभी कभी मैं सोचती हूँ प्रत्याशा का भाव कितने गहरे हमारे मस्तिष्क में जज्ब है और हमारी दिन ब दिन गतिविधियों को प्रभावित करता है ...लगता तो यह है कि अपेक्षा या प्रत्याशा का भाव हमारे जीन में ही समाया हुआ है ..और बिना इस भाव के हमारी कोई गतिविधि ही संचालित नहीं होती ...हम जो कुछ भी करते जाते हैं .. हम चाहते हैं कि वे घटित हों ....प्रेम, दोस्ती, काम-धाम ..एक लम्बी फेहरिस्त है.... ........हर ओर हर किसी की कोई न कोई प्रत्याशा है ..चाह है अपेक्षा है जो हर कोई एक दूसरे से रखता है|
न्यूटन ने भी कहा था -"प्रत्येक क्रिया की एक समान प्रतिक्रिया होती है"
पर यह भौतिक जगत ही नहीं हमारे ऊपर भी लागू होता है ... ....और यही "समान प्रतिक्रिया" ही तो प्रत्याशा /अपेक्षा /चाह है हमारी एक दूसरे से जो हमेशा बनी रहती है ...
और अगर हमारी ऐसी अपेक्षायें पूरी नहीं होती तो हम दुःख दर्द से आह कर उठते हैं .. 

अपेक्षायें होती हैं कष्टकर
जहरीली, घुमावदार
लगें सर्प दंश सरीखी
कभी कभी |

यह एक दिमागी कीड़ा है
मस्तिष्क की शायद कोई विकृति
विचित्र होती हैं यह चाह
है बड़ी उबड़ खाबड़ प्रत्याशाओं की राह |

इनका होना न होना
न होता ऐसा कोई भाव 
क्योंकि हमारी तकदीरें
पूरी कर देती हैं इनका अभाव |

और ये मौजूद ही रहती हैं
हमेशा, हर बार 
नहीं कर सकते हम इनकी
मौजूदगी से इनकार |

एक अंतहीन दुष्चक्र
नहीं कर सकते जिन्हें परित्यक्त
कितनी ही प्रयास कर लें
या चतुराई से  कोई बहाना बना लें |

एडिथ एवांस ने कहा है-" बिना प्रत्याशाओं के मानव जीवन की कल्पना ही संभव नहीं है "
आप क्या सोचते है ?? 
क्या सरल है इसके साथ रहना या इसके बगैर ??
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Expectations 
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Saturday, October 22, 2011

बदनसीब कहानियां


आधुनिक दुनियाँ ....विज्ञान और प्रौद्योगिकी का युग ,जगह जगह खुलते शापिंग माल ,गगनचुम्बी इमारतें, अंतर्जाल का फैलता विस्तार और सोशल नेटवर्क ..दूसरे ग्रहों ,चंद्रमाओं तक जा पहुँचाने के हमारे अभियान, ऊर्जा खोजों की नयी झिलमिलाहटें....सब कितना भव्य लगता है..हमें गर्व होता है कि हम कितनी तेजी से उन्नति कर रहे हैं ..ऐसे और भी सारे दृश्य जो विज्ञान फंतासी फिल्मों और उपन्यासों में पढ़ते हैं एक दिन हकीकत में बदल जायेगें..कौन जाने हम कभी अपनी छुट्टियां मंगल पर जा बितायें! 
लेकिन तनिक रुकिए !!
एक हकीकत और भी है ! एक और दुनियाँ और भी वजूद में है जो एक दूसरी हकीकत बयान कर रही है जहाँ  ४० फीसदी से अधिक लोग अमानवीय बसाहटों में गुजर बसर कर रहे हैं ..कुछ को कुदरत ने मारा है मगर बहुतेरे हमारे जातीय भेद भाव और उपेक्षा के शिकार हैं ....
एक चुभता सत्य! 
ऐसे संसार की एक झलक पाने को आपको किसी अफ्रीकी देश तक नहीं जाना है .. अपने सुख सुविधाभरी जिन्दगी से इतर तनिक गर्दन घुमा कर देखिये तो |
उन अभाव ग्रस्त जिंदगियों -चलती फिरती लाशों को देखिये मगर कहाँ? हम इतने असंवेदी और बाहरी जगत की सच्चाईयों के प्रति प्रतिरोधी हो चुके हैं कि हमें यह नग्न सत्य दिखता नहीं और अगर दिखता भी है तो एक खूबसूरत शहर के बदनुमा दाग मान मुंह फेर लेते हैं | 

हम खुद अपने में ही इतने मशगूल हैं कि इन अभावग्रस्तों की कुशल क्षेम कोई भी सहायता,इमदाद की फ़िक्र ही नहीं होती हमें .. ..

एक बदनसीब कहानी ...
यह कहानी है एक उस आदमी की जिसने पिछली सुनामी में अपना घर परिवार गँवा दिया था ....
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पूरी तरह बर्बाद और विनष्ट
प्रलयंकारी लहरों में
बह गए उसके सपने
घूमता बेसहारा इधर-उधर
कुंठित भिखारी सदृश |
सुनामी ने किया था
जिसे परिवार से विलग..
जीवित तो बच गया  वो
परन्तु खो चुका था जीवन |

नसों का ताना बना गया था गड़बड़ा
लाखों -करोड़ों की भांति
वो भी बेसुध सा, खड़ा हडबडा
रात- दिन, हफ्ते -महीने
छलते उसे हर दिन 
धनुस्तम्भ की भांति
जिए वो हर पल, गिन-गिन
जाने न क्या है कब ?? कौन से दिन ?
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एक और बदनसीब कहानी :
जो इक्कीसवी सदी के एक सभ्य,अच्छी शिक्षा प्राप्त और धनाढ्य इन्सान की है ,एक सब तरह से संपन्न जीवन यापन कर रहे सुखी मनुष्य की
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२१वीं सदी में
में, मेरी, और स्वयं की
मुझे सिर्फ होती है परवाह
बाकी और लोगों की
न मुझे फ़िक्र, न चाह |
वे सभी तो भगवान के बन्दे हैं
हम निरीह, व्यथित
भला कर ही क्या सकते हैं...
कहाँ है मेरे पास समय और पैसा
में नहीं कर सकता कुछ ऐसा- वैसा |
वैसे भी हम संतप्त और खुद से बेदार
दूसरों की फ़िक्र करना
निहायती रद्दी और बेकार |

देखभाल ,सहायता ,दया और दान
कहाँ हमारी सूची में,
हम तो भैया व्यस्त पड़े है
अपनी खुद की ड्यूटी में |
मेरी दुनिया है विकास और प्रगति की
विलासिता और मौज मस्ती की
मुझे छोड़, बाकी सब के पास जाइये
मेरे अलावा, दूसरे लोगों पर गौर फरमाईये |
कल्याण, परोपकारिता जैसे कपडे
मुझे फिट नहीं होते , जनाब
आजकल इन सब चीजों के बारे
में बात नहीं किया करते |
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  अब आप बताईये कौन सी कहानी ज्यादा बदनसीब है ??
त्रासदी तो दोनों में हैं .............लेकिन कौन सी ज्यादा गंभीर और खतरनाक है ??

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Thursday, October 13, 2011

सावधान: महामारी



गुस्सा ,चिडचिडापन,निराशा और खराब मूड ..जो नाम दें आप इसे.... ये सभी एक बड़ी छुआछूत की बीमारी के अलग अलग नाम हैं ..इनका एक हल्का सा प्रभाव भी एक बड़ी घटना को अंजाम दे जाता है ..खुशियों के माहौल को चौपट कर जाता है ..
इस बीमारी से दूर रहें! 
आप इस बीमारी के लक्षण कहीं भी देख सकते हैं ..कोई भी एक खराब  मूड और जुबान का आदमी इसकी गिरफ्त में आ सकता है और फिर होता है माहौल का खराब होना शुरू ...
बिना सोचे मुंह से अपशब्द निकालने ,बोलने वाले लोग आज बहुतेरे हैं और जब ऐसा होता है तो..
 फिर आप जानते ही हैं ...होती है बौछार कुछ ऐसी ..$##& ##$$... 
उस आदमी को देखो 
वह जहर उगलता आदमी 
माहौल को ख़राब  करता 
वो गुस्सेल चिढ चिढ़ा आदमी
यह हमेशा ऐसा ही 
रहा है करता 
नहीं छोड़ सकता वह 
यह गंदी आदत 
बल्कि और भी बढाता रहा है 
अपनी इस बुरी आदत को ...
अपने चिढ़े जले भुने चेहरे के साथ 
नहीं छोड़ सकता यह 
गंदी आदत, भले ही 
इसका खुद का अंत न हो जाय |

छुआछूत की खतरनाक
यह बीमारी 
है अनचाही फैलने, बढ़ने वाली 
न हो इसका  खुद का  अपना 
भले ही कोई मकसद 
मगर इसके मरीजों का मकसद है 
परिवेश को दूषित कर जाने का 
लोगों के सुख चैन को छीन  लेने का |

एक परजीवी की ही तरह 
यह अपने आश्रित को है 
धीरे धीरे ख़तम करती जाती 
प्राण घातक है बनती जाती 
अगर समय रहते नहीं हो पाया 
इस बीमारी का निदान 
तो यह बन जाती है विषाणु -रोग 
से भी अधिक खतरनाक 
इसलिए सावधान!
इसकी जड़ कहीं और नहीं 
बस आपमें ही है 
समय रहते इसे ढूंढ, भगाईये 
इसे दूर, नहीं तो 
 आपको भी चपेट में लेते 
नहीं लगेगी देर इसको ..

..तो दोस्तों अब यह आप पर है अपने में इस बीमारी के लक्षण ढूंढिए और खुद उपचार  कीजिये 
मुझे तो यही सबसे कारगर उपाय लगता है इस बीमारी के रोकथाम का ..
हम इसे महामारी बनते तो नहीं देख सकते|



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Sunday, October 2, 2011

मौन के बोल



कहते हैं मौन मन की शान्ति के साथ ही आत्म -निरीक्षण का मौका भी देता है
ठीक है यह ,मगर हमेशा सच नहीं 
क्योंकि 
कुछ मौन डरावने और अनचाहे होते हैं .
 जैसे टकराव और तीखे संवादों के बाद का  मौन, डांटने डपटने के बाद का मौन ,युद्धोपरांत का मौन और म्रत्यु के उपरान्त का मौन|
 
ये कुछ मौन आपको विदीर्ण कर डालते हैं और जीवन तबाह हो उठता है|
  इस तरह मौन के कितने ही आयाम और अभिव्यक्तियाँ हैं ...इसकी अपनी भाषा और बोल हैं जो सार्वभौमि है और बिना किसी पूर्व अनुभव के भी समझी जाने वाली है .

 कभी भी मौन के चलते प्रगाढ़ सम्बन्ध तक टूट जाते हैं क्योकि उभय पक्ष कोई भी संवाद नहीं करते ..बस मौन रहते हैं ..
ऐसा मौन खतरनाक है और हमें ऐसे मौन से दूर दूर ही रहना चाहिए ऐसे मौन की मुखरता बस उदासी का ही सबब बनती है. 

मौन की मुखरता 
बिलकुल सन्नाटा ,एक 
अनचाही मौजूदगी 
सताती हुयी डरावनी सी 
चरम चुप्पी 
एक कैद सी अवस्था 
एक संक्षिप्ति कितने ही 
आयामों की ...जो खुद 
कई खंडों अभिव्यक्त 
होती चलती है...
और चुभती है  
आमंत्रित करती  है 
घुटन और अप्रसन्नता 

 कितना चुभता है मौन 
बिलकुल भी स्वागत योग्य नहीं 
घिनौना सा और कितना 
संतप्त करता हुआ ...
एक उत्प्रेरक और 
बिना समझ में आने
 वाले भावों का ....

 इस मौन  का बड़ा है 
शब्दकोश और छिपे अनेक भाव 
जो चुभते  हैं नश्तर से भी तेज 
 परिवेश को भी  करता 
जंग लगाता   मौन जिससे 
तिल तिल कर छीजते जाते 
लोगों के वजूद ..
और उनकी चेतना 
यह अँधा करती है और विचारों 
को करती चलती है कुंद ....

इसमें कोई शक नहीं 
सभी मौन बुरे नहीं मगर ऊपर वर्णित 
मौन आपकी सेहत के लिए बुरा है ...

पुनश्चकिसी भी गलतफहमी और दुः भरे तनाव  के लिए मौन कभी भी हल  नहीं है एक समस्या ही है ...आगे बढिए बात कीजिए ...पुकारिए कि लगे अभी सब कुछ ख़त्म नहीं हुआ ....अभी भी आस बाकी है...
मौ के बोल कभी भी मीठे फल नहीं देते ....
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Speech of Silence 
http://jyotimi.blogspot.com/2011/10/speech-of-silence.html
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